Detailed Notes on Shodashi

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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, boosting interior tranquil and aim. Chanting this mantra fosters a deep sense of tranquility, enabling devotees to enter a meditative condition and link with their internal selves. This profit boosts spiritual consciousness and mindfulness.

यदक्षरैकमात्रेऽपि संसिद्धे स्पर्द्धते नरः ।

सा नित्यं मामकीने हृदयसरसिजे वासमङ्गीकरोतु ॥१४॥

चक्रेऽन्तर्दश-कोणकेऽति-विमले नाम्ना च रक्षा-करे ।

ह्रीङ्काराम्भोजभृङ्गी हयमुखविनुता हानिवृद्ध्यादिहीना

ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं जगदद्यापि दृश्यते ॥६॥

देवस्नपनं मध्यवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

कामेश्यादिभिराज्ञयैव ललिता-देव्याः समुद्भासितं

देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥

शस्त्रैरस्त्र-चयैश्च चाप-निवहैरत्युग्र-तेजो-भरैः ।

इसके अलावा त्रिपुरसुंदरी देवी अपने नाना रूपों में भारत के विभिन्न प्रान्तों में पूजी जाती हैं। वाराणसी में राज-राजेश्वरी मंदिर विद्यमान हैं, जहाँ देवी राज राजेश्वरी(तीनों लोकों की रानी) के रूप में पूजी जाती हैं। कामाक्षी स्वरूप में देवी तमिलनाडु के कांचीपुरम में पूजी जाती हैं। मीनाक्षी स्वरूप में देवी का विशाल भव्य मंदिर तमिलनाडु के मदुरै में हैं। बंगाल के हुगली जिले में बाँसबेरिया नामक स्थान में देवी हंशेश्वरी षोडशी (षोडशी महाविद्या) नाम से पूजित हैं।

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